किसी
राष्ट्र् के भविष्य को आकार देने का प्राथमिक उतरदायित्व तीन लोगों पर है-माता, पिता एवं शिक्षक। इनमें से शिक्षक सर्वमहत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते
हैं-चूंकि ये इस कार्य में विशेष तौर पर प्रशिक्षित तथा चयनित होते हैं और अपनी क्षमतानुरुप
इस कर्त्तव्य को निभाते हैं। एक शिक्षक विद्यार्थियों, अभिभावकों
तथा समाज के विश्वास का पात्र होता है और इस विश्वास को पूरी सत्यनिष्ठा के साथ
निबाहना उसका धर्म होता है, वह प्रत्येक परिस्थिति में अपने
विद्यार्थियों पर आशीर्वाद की वर्षा करता है। शिक्षक अपने विद्यार्थियों को एक
मूर्ति की तरह गढ़ते हैं। उनके दिशा निर्देश विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की
रुपरेखा तय करते हैं तथा उनके लिए नइ सम्भावनाऍं पैदा करते हैं।
बच्चे
उर्वरभूमि पर लहलहाती फसलों के सदृश हैं, जिस पर किसी
भी राष्ट् की आधारशिला निर्धारित होती हैं। राष्ट्र् के भविष्य की बुनियाद बच्चें
होते हैं। ये उस राष्ट्र्रुपी वृक्ष की जडें हैं जो नइ पीढ़ी को कार्य, आराधना तथा विद्वता के फल प्रदान करता है। इन बच्चों को भविष्य की लम्बी
राह तय करनी है तथा राष्ट्र् को सफलता के मार्ग पर ले जाना है।
देवेन्द्र
कुमार
प्रभारी
प्रधानाध्यापक
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